प्रीतिनगर की काव्यगोष्ठी में बिखरे कविता के रंग


         लखनऊ। प्रीतिनगर साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा होलिकोत्सव के स्वागत में एक सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन रंग-सदन पर आचार्य ओम नीरव की अध्यक्षता, अशोक कुमार श्रीवास्तव रंग के संयोजन और राहुल द्विवेदी स्मित के संचालन में किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ अजय प्रसून और विशिष्ट अतिथि के रूप में संपत्ति कुमार मिश्र भ्रमर बैसवारी उपस्थित रहे। होली रंगों में डूबी इस गोष्ठी में काव्य पाठ का प्रारम्भ भारती पायल की वाणी वंदना से हुआ- सच को सच कह पाऊँ सच भी हो सुंदरतम, सुंदर सच कविता में हो मंगलमय अनुपम, जन से जन को जोड़े, वह ढाई आखर दो, हे माँ वीणा वादिनि, ज्योतिर्मय मन कर दो। भ्रमर बैसवारी ने अपनी रचना से पूरे परिवेश को होली के रंग में रंग दिया- हमें तो लूट लिया रंग भरी होली ने, इनकी मुंहबोली ने उनकी हमजोली ने। संयोजक अशोक कुमार श्रीवास्तव रंग की रचना में होली की मस्ती भरपूर दिखाई दी- ये रंग तू रंगे रंगोली कर दे, चाहे तो फूलों को तितलियों के हवाले कर दे। राहुल द्विवेदी स्मित झुझियों की याद दिलाते हुए सुनाया- होली मिलने चल पड़ीं खुशियाँ सबके द्वार, पुनः मुबारक आपको गुझियों का त्यौहार। भारती पायल ने होली का बिम्ब कुछ इसप्रकार उकेरा- रंगों के त्यौहार में, छैला बने छिछोर, नाच रहे हुड़दंग में, रंग-बिरंगे मोर। राम नारायण तिवारी ने होली की उमंग को शब्दों में ढालते हुए कहा- हर तान उमंग को कर मतंग, छाया जीवन यौवन वसंत। डॉ अजय प्रसून ने शृंगार का उत्कर्ष प्रस्तुत करते हुए गीत सुनाया तो इन पंक्तियों पर श्रोता झूम उठे- परेशानियाँ पग-पग पर हों कैंची हर जुबान हो जाये, ऐसा भी क्या रूप तुम्हारा चूनर उड़े यान हो जाये। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए ओम नीरव ने होरी में गोरी का बिम्ब कुछ ऐसे उकेरा- छोरन में फँसि के धँसि के हँसि गाल गुलाल मलावति गोरी, अंग अनंग उतंग मृदंग सी संग फिरै हुड़दंग के गोरी। समापन पर जलपान में रंग जी ने अभ्यागतों का गुझियों से विशेष स्वागत किया और अजवाइन जैसे सुगंधित पौधे भेंटकर पौध लगाओ पर्यावरण बचाओ का संदेश प्रसारित दिया।