जीवन में खुशियाँ भरें फागुन के ये रंग – राजाभ

 


लखनऊ। कवितालोक की 44 वीं काव्यशाला का आयोजन महोना स्थित चंद्रवाटिका शिक्षा निकेतन में डॉ सी के मिश्र के सौजन्य से ओम नीरव के संरक्षण और राहुल द्विवेदी स्मित के अन्योज्न-संचालन में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता डॉ अजय प्रसून ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में डॉ प्रेमलता त्रिपाठी और विशिष्ट अतिथि के रूप में केदार नाथ शुक्ल उपस्थित रहे। भारती पायल की वाणी वंदना से प्रारम्भ हुए काव्य पाठ में कृष्ण कुमार मिश्र ने ग़ज़ल के अश'आर पर खूब वाहवाही लूटी- कभी इंकार लिख डाला, कभी इकरार लिख डाला, हमारी लेखनी ने ढेर सारा प्यार लिख डाला। डॉ प्रेमलता त्रिपाठी ने गीत सुनाकर सभी को रस-मुग्ध कर दिया- मौन गालियां हैं बुलाती। राजाभैया गुप्ता राजाभ ने होली के स्वागत में सुनाया- होली की उभकामना मन में जागे उमंग, जीवन में खुशियाँ भरें फागुन के ये रंग। भारती पायल ने कुम्भ स्नान के माध्यम से राष्ट्रीय भावना का संदेश देते हुए कहा- ज़िंदगी के पाप धोने खूब जाओ कुम्भ में, मोक्ष पाने को सभी जाकर नहाओ कुम्भ में, मांग लो जो जी करे लेकिन न इतना भूलना, राष्ट्र के भी नाम इक डुबकी लगाओ कुम्भ में। मृगाङ्क श्रीवास्तव ने रंगों की बात कुछ इस अंदाज़ में उठाई- लोग कहें, रंगों से बिलकुल न डरें,


पग-पग पर रंग बदलने वालों का क्या करें। केदार नाथ शुक्ल ने अपने काव्य पाठ से लोगों को वाह वाह करने पर विवश दिया- चाँद की समीपता भले ही पा गए परंतु, आदमी से आज देखो दूर हुआ आदमी। संचालक राहुल द्विवेदी स्मित ने गीत सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। ओम नीरव ने होली पर रचनाएँ सुनाते हुए कहा- छोड़ लुकाठी ले पिचकारी कबिरा धाये होली में, सूरदास की काली कमली रंग रंग जाये होली में। अध्यक्ष पद से काव्य पाठ करते हुए डॉ अजय प्रसून ने टप्पे के माध्यम से कटाक्ष किया- सम्मेलन था अखिल भारतीय कवि थे केवल पाँच, दो ने करे चुटकुलेबाज़ी तीन रहे थे नाच, मैं सच सच बोल रहा हूँ, आज मुंह खोल रहा हूँ। इस अवसर पर कवितालोक त्रिशतकीय महाकुंभ से लौटे कवियों/कवयित्रियों का विशेष अभिनंदन किया गया।